नयी दिल्ली. भारत और अमेरिका के बीच शुल्क विवाद पर बातचीत के रास्ते खुले हैं और इसे सुलझाने के प्रयास जारी रहेंगे. सरकारी सूत्रों ने बुधवार को यह कहा. अमेरिका सरकार ने बुधवार से कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारत से अमेरिका को होने वाले वस्तुओं निर्यात पर 50 प्रतिशत तक शुल्क लगा दिया है.
सूत्रों ने कहा, “भारतीय निर्यात की विविध प्रकृति को देखते हुए (शुल्कों का) प्रभाव उतना गंभीर होने की संभावना नहीं है, जितना आशंका जताई जा रही है.” उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए भारत और अमेरिका के बीच बातचीत के रास्ते खुले हैं.
सूत्रों ने निर्यातकों को आश्वासन देते हुए कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है और यह केवल भारत और अमेरिका के बीच दीर्घकालिक संबंधों में एक अस्थायी चरण है.
पचास प्रतिशत अमेरिकी शुल्क से झींगा, कपड़ा, रत्न-आभूषण के निर्यात पर पड़ेगा गंभीर प्रभाव
अमेरिका भेजे जाने वाले भारतीय सामान पर 50 प्रतिशत के भारी शुल्क से झींगा, कपड़ा, चमड़ा और रत्न एवं आभूषण जैसे क्षेत्रों में निर्यात और रोजगार सृजन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. निर्यातकों ने कहा कि 25 प्रतिशत शुल्क के अलावा भारत पर 25 प्रतिशत का जुर्माना लगाने से उसके सबसे बड़े निर्यात बाजार में भारतीय उत्पादों की आवाजाही बाधित होगी.
बीते वित्त वर्ष भारत के 437.42 अरब डॉलर मूल्य के वस्तु निर्यात में अमेरिका का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा था. अमेरिका 2021-22 से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 2024-25 में, वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 131.8 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. इनमें 86.5 अरब डॉलर निर्यात और 45.3 अरब डॉलर आयात था. चमड़ा क्षेत्र के एक निर्यातक ने कहा, ”50 प्रतिशत शुल्क एक आर्थिक प्रतिबंध की तरह है. इससे इकाइयां बंद होंगी और नौकरियां कम होंगी.” कपड़ा निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा कि 10.3 अरब डॉलर के निर्यात के साथ कपड़ा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है.
उन्होंने कहा, ”उद्योग अमेरिका द्वारा घोषित 25 प्रतिशत जवाबी शुल्क को लेकर तैयार था. लेकिन, 25 प्रतिशत अतिरिक्त बोझ ने…भारतीय कपड़ा उद्योग को अमेरिकी बाजार से प्रभावी रूप से बाहर कर दिया है. इसका कारण बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में 30-31 प्रतिशत शुल्क के नुकसान के अंतर को पाटना असंभव है.” रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के चेयरमैन किरीट भंसाली ने कहा है कि अमेरिकी बाजार पर हमारी निर्भरता काफी ज्यादा है.
उन्होंने कहा, ”तराशे और पॉलिश किए हुए हीरों के मामले में भारत का आधा निर्यात अमेरिका को होता है. इस शुल्क वृद्धि से पूरा उद्योग ठप पड़ सकता है. इससे कारीगरों से लेकर बड़े विनिर्माताओं तक, मूल्य श्रृंखला के हर हिस्से पर भारी दबाव पड़ेगा.” भंसाली ने कहा कि तुर्की, वियतनाम और थाइलैंड जैसे प्रतिस्पर्धी अब भी काफी आगे हैं, जिससे भारत के 50 प्रतिशत शुल्क के कारण अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद अपेक्षाकृत कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं. उन्होंने कहा कि अगर इस असंतुलन को दूर नहीं किया गया, तो यह अमेरिका के लिए एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की दीर्घकालिक स्थिति को नुकसान पहुंचा सकता है.
हीरा क्षेत्र के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि हीरे को तराशना और पॉलिश क्षेत्र के एक बड़ा झटका है. यह क्षेत्र गुजरात के खासकर सूरत, नवसारी, भावनगर और जसदान में लाखों लोगों को नौकरियां दे रहा है. कोलकाता स्थित एक समुद्री खाद्य निर्यातक ने कहा कि अब अमेरिकी बाजार में भारत का झींगा ‘बेहद’ महंगा हो जाएगा. इससे निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित होगी.
झींगा निर्यातक ने कहा, ”हमें पहले से ही इक्वाडोर से भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वहां केवल 15 प्रतिशत शुल्क है. भारतीय झींगे पर पहले से ही 2.49 प्रतिशत डंपिंग रोधी शुल्क और 5.77 प्रतिशत प्रतिपूर्ति शुल्क लगता है. इस 50 प्रतिशत के बाद, शुल्क काफी बढ़ जाएगा.” इसी तरह, एक चमड़ा निर्यातक ने कहा कि कुछ कंपनियों के पास लगभग दो-तीन महीने के ऑर्डर हैं, लेकिन अमेरिकी कंपनियां ऑर्डर बनाए रखने के लिए लगभग 20 प्रतिशत की छूट की मांग कर रही हैं.
चमड़ा ‘फुटवियर’ निर्यातक ने कहा, ”भारत के लिए 50 प्रतिशत शुल्क को ध्यान में रखते हुए, यदि छूट को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो ऑर्डर पूरी तरह से रोक दिए जाएंगे या रद्द कर दिए जाएंगे. इसके अलावा, यदि छूट नहीं दी जाती है, तो कोई नया ऑर्डर नहीं दिया जाएगा.” उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार करने वाली कंपनियों को अमेरिकी व्यापार में नुकसान के कारण अपने कार्यबल में 50 प्रतिशत की कमी की आशंका है.
निर्यातकों ने सरकार से भारी शुल्क से निपटने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया है. निर्यातकों के शीर्ष निकाय फियो के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने निर्यातकों को राहत देने के लिए एक वर्ष की अवधि तक कर्ज के मूलधन और ब्याज के भुगतान पर मोहलत देने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, मौजूदा सीमा में 30 प्रतिशत की स्वत? वृद्धि और आपातकालीन ऋण गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत बिना किसी गारंटी के मुक्त ऋण देने पर भी विचार किया जा सकता है. इससे सरकारी खजाने पर अधिक बोझ डाले बिना इन कंपनियों पर पड़ रहे दबाव को कम करने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा, प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिए पीएलआई योजना का विस्तार करना, बुनियादी ढांचे को बढ़ाना और कोल्ड-चेन/भंडारण परिसंपत्तियों में निवेश करने के साथ आक्रामक रूप से दूसरे देशों को निर्यात बढ़ाने के लिए यूरोपीय संघ, ओमान, चिली, पेरू, जीसीसी, अफ्रीका और अन्य लातिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापार समझौतों (एफटीए) में तेजी लायी जानी चाहिए.