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Home»राष्ट्र»आदिवासियों के जीवन में रचे बसे हैं राम
राष्ट्र

आदिवासियों के जीवन में रचे बसे हैं राम

Team RashtrawaniBy Team RashtrawaniApril 11, 2024Updated:April 14, 2024No Comments5 Mins Read
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आदिवासियों के जीवन में रचे बसे हैं राम
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बस्तर में कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ और प्रभु श्रीराम के संबंधों का जैसे ही उल्लेख किया, वहां उपस्थित विशाल जनसमूह का रोम-रोम जैसे आस्था और गर्व से भर गया। भगवान राम मानवीय जीवन के लिए मर्यादा, नैतिकता, आचरण एवं मूल्यों के बोध हैं। किसी भी राष्ट्र के जीवन में कुछ अवसर ऐसे आते हैं, जो उसकी अस्मिता को सुदृढ़ करते हैं। 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राणप्रतिष्ठा संपूर्ण आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जगत का अनुष्ठान है। इसके ज्योर्तिपुंज से समग्र मानवता उर्वर होगी। भारतीय समाज ने राम मंदिर के निर्माण की इस यात्रा में जिस एकता और सद्भाव का परिचय दिया है, वह उनके आदर्शों की स्वीकार्यता को प्रमाणित करता है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा एक ओर राम मंदिर निर्माण के स्वप्न को साकार करने वाले हुतात्ममाओं के स्मरण का अवसर है। वहीं प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर सामाजिक समरता का ऐसा प्रकल्प है, जो राष्ट्रीय जीवन में एकता और अखंडता के तंतुओं को मजबूत करेगा।

भगवान राम के जीवन चरित्र को समाज रामचरित मानस, रामलीला, श्रुतियों एवं लोककलाओं के जरिए देखता है। हमारे नैतिक एवं जीवन मूल्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन प्रसंग से स्पंदित होते हैं। प्रभु श्रीराम के जीवन की प्रत्येक उपलब्धि व सुख-दुख में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति, आदिवासी और गरीब पहले साहचर्य संगी-साथी हैं। वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण एवं माता जानकी को नाव से पवित्र गंगा नदी पार कराने वाले निषादराज केवट से लेकर माता शबरी के उद्धार की गाथा सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण है। प्रभु श्रीराम का जीवन चरित्र एवं उनके द्वारा स्थापित मर्यादित आचरण हजारों सालों से जनजातीय समाज में लोक व्यवहार का हिस्सा है। आदिवासी समाज के बीच प्रभु श्रीराम जिस तरह रचबस गए, वह अपनत्व और अंत्योदय दोनों का बोध कराता है।

आज भी आदिवासी समाज जन्म, मृत्यु, हर्ष, विषाद, आनंद, लोक उत्सव, विरह और वेदना के हर क्षण प्रभु श्रीराम का स्मरण करता है। हां, राम के चरित्र को अलग-अलग जनजातीयों ने भिन्न रूप में धारण किया। यहां तक की भगवान राम का चरित्र इंडोनेशिया, थाईलैंड, मंगोलिया, तिब्बत और मंगोलिया के जनजातीय समाज में रचा-बसा है। भारत का आदिवासी समाज आज विश्व के समक्ष छाई तमाम चुनौतियां चाहे वह जलवायु संकट हों या भौतिकतावाद, उससे निपटने का मार्ग प्रशस्त करता है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए आदिवासी समाज की श्रेष्ठ प्रथाओं को आदर्श रूप में प्रचारित किया है। प्रकृति के साथ मानवीय जीवन का सह-अस्तित्व स्थापित करने के लिए वनवासी समाज के लिए भगवान राम अभिभावक की तरह हैं। जनजातियों के जीवन में प्रभु श्रीराम के मर्यादित जीवन की छाप आज भी अक्षुण्य रूप में विद्यमान है। वनों में रहने वाले समाज में यह रामधर्म के रूप में मौजूद है। भगवान रामचंद्रजी द्वारा प्रस्तुत की गई आचरण संहिता को जन सामान्य ने अपनाया। आदिवासियों की आजीविका, त्योहार,लोकरंग में यह अभिव्यक्त होती है।

छत्तीसगढ़ से प्रभु श्रीराम का अनन्य संबंध है। छत्तीसगढ़ की वाचिक परंपरा, रामलीला, जनजातीय लोकचित्र शैलियों में प्रभु श्रीराम के जीवन का दर्शन होता है। माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की राजकुमारी थीं। आज भी उनकी जन्मस्थली चंद्रखुरी में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। ऐसी मान्यता है कि मां जानकी सीता की जन्मस्थली मिथिलांचल में बेटियों से चरण स्पर्श नहीं कराया जाता। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भांजे से पैर नहीं छुआया जाता, क्योंकि वह बेटी के पुत्र हैं। उन्हें भगवान राम के रूप में पूज्य माना जाता है। वनवास का एक बड़ा कालखंड भगवान राम ने छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य वन की पावनधरा पर व्यतीत किया। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेशवासियों को अयोध्या की यात्रा कराने का संकल्प लिया है। 7 फरवरी को भगवान राम के ननिहाल से अयोध्या के लिए पहली गाड़ी रवाना हुई। श्रीरामलला दर्शन योजना के माध्यम से 18 से 75 वर्ष तक के श्रद्धालु अयोध्या धाम के दर्शन कर रहे हैं। दुर्ग, रायपुर, अंबिकापुर और रायगढ़ से अयोध्या के लिए यह ट्रेन चलती है। बलरामपुर-रामानुजगंज के तातापानी का संबंध माता जानकी से है। इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित किया जा चुका है। भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारों की प्रयास से प्रदेश के राजिम तीर्थ स्थल को आज वैश्विक पहचान मिल चुकी है।

प्रभु श्रीराम का जीवन चरित्र राष्ट्र की एकता और अखंडता के तंतुओं को समवेत करता है। वह राष्ट्रीय चरित्र की स्थापना के प्रेरकपुंज है। भगवान राम हमें एक ऐसा समाज विकसित करने का संदेश देते हैं, जो सामाजिक समरसता के मूल्यों से सिंचिंत हो। आज केंद्र में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार गरीब, आदिवासी एवं समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए उसी वैचारिक निधि से प्रेरणा प्राप्त कर रही है, जिसका मार्ग हमारी आस्था के केंद्र मर्यादापुरुषोत्तम राम ने दिखाया है। स्वच्छ भारत मिशन, उज्जवला, जनधन योजना से लेकर आयुष्मान भारत योजना के प्रारंभिक लाभार्थी दूरस्थ अंचल में रहने  लोग रहे हैं। प्रधानमंत्री जनजाती आदिवासी न्याय महायोजना के अंतर्गत जनजातीय समूहों के लिए सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जा रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी समाज के उत्थान को अंत्योदय और एकात्म मानववाद का पहला अनुष्ठान मानती है। आदिवासी समाज सदियों से राष्ट्र की समृद्धि और लोकमंगल का कारक रहा है। समृद्धि और संवाद के इस सेतु को और मजबूत करने की आवश्यकता है।

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा देश में सामाजिक समरसता का केंद्र बिंदू बने, इस हेतु देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र को आत्मसात करना होगा। भारतीय समाज में राम सर्वव्यापी एवं सर्वस्पर्शी हैं। चरित्र निर्माण के साथ ही देश के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में भी प्रभु श्रीराम की गहरी छाप है। राम मंदिर से निकले भारतीय अस्मिता के उद्घोष के साथ आज हम सभी को एकात्मता स्थापित करने की आवश्यकता है।

जया लक्ष्मी तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता

BHAGWAN RAM IN CHHATTISGARH CHHATTISGARH FAMOUS PLACE CHHATTISGARH TOURISM RAM MANDIR
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