मुंबई. महाराष्ट्र सरकार ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह सेंसर बोर्ड को मराठी फिल्म ‘खालिद का शिवाजी’ को जारी अनापत्ति प्रमाण-पत्र की दोबारा जांच करने का निर्देश दे और कोई निर्णय होने तक आठ अगस्त को होने वाली इसकी रिलीज पर रोक लगा दे.
यह अनुरोध महाराष्ट्र की संस्कृति सचिव किरण कुलकर्णी द्वारा सूचना एवं प्रसारण सचिव को छह अगस्त को भेजे गए पत्र में किया गया है. दरअसल दक्षिणपंथी संगठनों ने दावा किया है कि फिल्म में छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास को विकृत किया गया है.
पत्र के अनुसार, ऐसी आशंका है कि फिल्म के वर्तमान स्वरूप में प्रदर्शन से कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
पत्र में कहा गया है कि सरकार को पांच अगस्त को (दक्षिणपंथी कार्यकर्ता) नीलेश भिसे की लिखित शिकायत मिली, जिसमें उन्होंने फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद आरोप लगाया कि फिल्म के कुछ संवाद तथ्यात्मक रूप से गलत हैं और इससे जनता की भावनाएं आहत हो सकती हैं.
हाल ही में मुंबई में राज्य फिल्म पुरस्कार समारोह के दौरान लोगों के एक समूह ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने या विवादास्पद संवादों को हटाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था. पत्र में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से आग्रह किया गया है कि वह केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को निर्देश दे कि वह फिल्म के लिए जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र की पुन? जांच करे तथा इसके बाद निर्णय लिये जाने तक इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दे.
राज प्रीतम मोरे द्वारा निर्देशित ‘खालिद का शिवाजी’ एक मुस्लिम लड़के की 17वीं सदी के महान मराठा योद्धा राजा की खोज की यात्रा पर केंद्रित है. कांग्रेस की राज्य इकाई के प्रवक्ता सचिन सावंत ने भाजपा-नीत महायुति सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार केवल ट्रेलर के आधार पर और फिल्म की वास्तविक विषयवस्तु को समझे बिना ही ‘खालिद का शिवाजी’ की रिलीज पर रोक लगाने की मांग कर रही है.
कांग्रेस सदस्य ने कहा, ”एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा छत्रपति शिवाजी महाराज को केवल हिंदुत्ववाद के प्रतीक के रूप में चित्रित करने पर आमादा है- एक संकीर्ण, कट्टर और रूढि.वादी छवि जो तथ्यात्मक रूप से गलत है.” उन्होंने पूछा, ”महाराज खालिद के नायक क्यों नहीं हो सकते? अगर मुसलमान शिवाजी महाराज के मूल्यों से जुड़ाव महसूस करते हैं तो भाजपा इतनी परेशान क्यों है?”