नयी दिल्ली. छत्तीसगढ़ के उदंती-सीतानदी जंगलों की 17 ग्राम सभाओं के एक महासंघ ने जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखकर बाघ अभयारण्य अधिकारियों पर अवैध तरीके से बेदखली और कई कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है. इस मामले पर जनजातीय कार्य मंत्रालय को भेजे गए प्रश्नों का कोई जवाब नहीं मिला.
जनजातीय कार्य सचिव विभु नायर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित एक पत्र में, ग्राम सभा के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि “उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्य के अधिकारियों की कई गैरकानूनी गतिविधियां” उनके वन अधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं.
प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि उन्हें “वन अधिकार अधिनियम 2006, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का घोर उल्लंघन करते हुए हमारे पैतृक निवास स्थानों से जबरन बेदखल किया जा रहा है.” महासंघ ने आरोप लगाया कि 2020 से, अधिकारी भुंजिया, गोंड और कमार समुदायों के निवास वाले सोरनामल जैसे गांवों को मनमाने ढंग से बेदखली के नोटिस जारी कर रहे हैं.
पत्र में दावा किया गया है कि सोरनामल, इच्छाडी और दशपुर गांवों के परिवारों को वन अधिकार अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही पहले ही बेदखल कर दिया गया है. पत्र में आरोप लगाया गया, “पिछले दो वर्षों से बाघ अभयारण्य के अधिकारियों ने खेती पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे सैकड़ों परिवारों के जीवन और अस्तित्व को गंभीर खतरा पैदा हो गया है.” महासंघ ने आरोप लगाया कि अभयारण्य में बाघ संरक्षण कार्यक्रम को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा स्थानीय ग्राम सभाओं की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति के बिना मंजूरी दी गई थी.
पत्र में कहा गया, “इस तरह का गैरजिम्मेदाराना और मनमाना संरक्षण हस्तक्षेप न केवल वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का घोर उल्लंघन है, बल्कि जैव विविधता संरक्षण के सह-अस्तित्व दृष्टिकोण को भी कमजोर करता है.” इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि अभयारण्य के अधिकारी “गुप्त रूप से हमारे सामुदायिक वन संसाधन (सीएफआर) क्षेत्रों को पर्यटन विकास के लिए घास के मैदानों में बदलने और अधिक गांवों को बेदखल करने की योजना बना रहे हैं”, जबकि ग्राम सभा की सहमति का दावा करके मीडिया को गुमराह कर रहे हैं. गरियाबंद और धमतरी जिलों में स्थित उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्य छत्तीसगढ़ के तीन बाघ अभयारण्यों में से एक है, जिसे 2009 में दो समीपवर्ती अभयारण्यों को मिलाकर बनाया गया था.