पुण्यतिथि पर विशेष : 11 फरवरी 2024 को देशभर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें याद किया गया। एकात्म मानववाद के प्रणेता श्रद्धेय श्री दीनदयाल उपाध्याय जी को एक लेख के माध्यम से छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व नेता प्रतिपक्ष तथा वरिष्ठ भाजपा नेता श्री धरमलाल कौशिक जी ने भी आदरांजलि अर्पित की। प्रस्तुत है लेख के मुख्य अंश
नर में नारायण देखते थे श्रद्धेय दीनदयाल जी
22 जनवरी 2024 को राष्ट्र जीवन में एक ऐसा अनुष्ठान संपन्न हुआ, जिसने पूरे देश के वातावरण को राममय बना दिया है। प्रभु श्रीराम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम अयोध्या में संपन्न हुआ, लेकिन इस सांस्कृतिक उत्सव में भारतीय समाज ने जिस प्रकार सहभागिता सुनिश्चित की, वह अभूतपूर्व एवं विलक्षण के साथ दैवीय है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन दर्शन में विश्व जगत राजनीतिक, सामाजिक,आर्थिक समस्याओं के समाधान खोज रहा है। पश्चिम जगत के बुद्धिजीवियों में यह एक कथित धारणा रही है कि भारत का अपना कोई अर्थचिंतन नहीं है। यहां तक की वह चाणक्य के अर्थशास्त्र को सिर्फ एक पुस्तक मानते थे। पश्चिम के दार्शनिकों ने समय-समय पर अपनी सुविधा और पूंजीवादी व्यवस्था के पोषण के लिए राजनीतिक दर्शनों का प्रतिपादन और उपयोग किया। वहीं भारत में प्रभु श्रीराम के जीवन और रामराज्य की शाश्वत व्यवस्था के रूप में अंत्योदय की परिकल्पना हजारों साल से उपस्थित रही है।
श्रद्धेय पं. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के रूप में अंत्योदय के स्वप्न को साकार करने का सैद्धांतिक ही नहीं व्यावहारिक दर्शन लोगों के समक्ष रखा। हालांकि राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति में लगे वामपंथियों एवं कांग्रेस ने देश की समृद्धि के इस मूल विचार की हमेशा उपेक्षा की। आज इसका प्रतिफल परिवारवाद एवं तुष्टिकरण में जुटे राजनीतिक दलों के सामने है। राममय हो चुका भारतीय समाज आज रामराज्य की व्यावहारिक सिद्धि शासन तंत्र में भी देख रहा है। इसके पीछे पं. दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद तथा अंत्योदय का दर्शन है, जो भारतीय जनता पार्टी के लिए मात्र वैचारिक पूंजी नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की हर जनकल्याणकारी नीति का मंगलाचरण मंत्र है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद का जो दर्शन दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया, वह कोई मौलिक विचार नहीं था। वह इस देश की धमनियों में हजारों साल से प्रवाहित विचार है। वह रामराज्य के समय से चली आ रही विचारधारा थी, जिसे श्रद्धेय पंडित दीनदयाल जी ने स्वदेशी के दर्शन से विमुख होती राजनीतिक व्यवस्थाओं के समक्ष रखा। यही वजह है कि जब पूंजीवादी एवं साम्यवादी तथा कार्ल मार्क्स से लेकर दुनिया भर के विचारक व उनकी विचारधाराएं गौण होती जा रही हैं, तब मानवीय जीवन के सम्मुख उपस्थित तमाम संकटों का समाधान पं. दीनदयाल जी द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद में नजर आता है।
श्री दीनदयाल जी कहते हैं कि हम अपने जीवन दर्शन का विचार कर भारतीय अर्थव्यवस्था का मौलिक निरुपण करें। भारत की समस्याओं का समाधान वह स्वत्व के आधार पर करने का आग्रह करते हैं। दरअसल, प्रानुकरण अथवा नकल से किसी भी क्षेत्र में कुछ तात्कालिक सफलताएं प्राप्त हो सकती हैं, लेकिन किसी भी देश की समृद्धि का नैसर्गिक आधार स्वत्व के आधार पर ही खड़ा होता है। भारतीय चिंतन के मनीषी दीनदयाल जी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘भारतीय अर्थनीति के विकास की दिशा’ प्रत्येक युवा विशेष रूप से सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यक्ति को पढ़नी चाहिए। इस पुस्तक में स्वदेशी अर्थशास्त्र का जिस व्यावहारिक एवं सुंदर तरीके से वर्णन किया गया है, वह दुर्लभ और मार्गदर्शक है। इसके अलावा सम्राट चंद्रगुप्त, टैक्स या लूट, बेकारी की समस्या और उसका हल, अखंड भारत, विश्वासघात, जनसंघ सिद्धांत, राष्ट्र जीवन की समस्याएं, अमेरिकी अनाज पीएल 480, एकात्म मानववाद समेत कई पुस्तक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का हल प्रस्तुत करती हैं। उदाहरण के लिए आज हम देखते हैं कि भौतिकवाद की पूर्ति के लिए प्रकृति का कितना अधिक दोहन किया जा रहा है। पं. दीनदयाल जी का समग्र दर्शन जमीन, जल, जंगल और जीवन के मध्य संतुलन स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। एकात्म मानववाद का दर्शन मात्र मानवीय जीवन की समृद्धि की बात नहीं करता बल्कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की बात करता है। वह प्रकृति के शोषण नहीं उपयोग के पक्षधर हैं। यही एकात्म अर्थनीति की आत्मा है। एकात्म मानववाद में वह इसका उल्लेख करते हुए कहते हैं, हमारी संपूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव होना चाहिए। यह यत् पिण्डे तत् ब्रह्मांडे के न्याय के अनुसार समष्टि का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका अनुकरण है। भौतिक संसाधन मानवीय जीवन को सुख प्रदान करने का साधन हैं। यह साध्य नहीं बनने चाहिए। यदि हम पं. दीनदयाल जी के स्वदेशी चिंतन पर चलेंगे तो मानवीय जीवन का उत्थान होगा एवं प्रकृति समृद्धि भी बनी रहेगी। आज संयुक्त राष्ट्र संघ समेत वैश्विक संस्थाएं तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच जिस समावेशी विकास की बात कर रहे हैं, एकात्म मानववाद में वह अत्यंत सरल एवं व्यावहारिक रूप में परिभाषित है।
दुर्भाग्य से देश की स्वतंत्रता के बाद 50 साल से भी अधिक समय तक राज करने वाली सत्ता के आर्थिक चिंतन के मूल में पाश्चात्य प्रभाव की प्रमुखता थी। कांग्रेस और उसकी सरकारों ने देश में एक ऐसा अर्थतंत्र विकसित किया, जिसने भारत की आत्म निर्भरता को विच्छेदित किया। आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन तथा उपयोग पर आधारित जिस अर्थतंत्र की ओर आगे बढ़ रहा है, उससे राष्ट्रीयता की जड़ें मजबूत हो रही हैं। आपके नजदीकी रेलवे स्टेशन से लेकर शहर के व्यस्ततम बाजार उस शहर और नजदीकी गांव में तैयार उत्पादों से संपन्न हैं। इससे हमारे आसपास के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग के घर आर्थिक समृद्धि आ रही है। त्योहारों में कभी चीनी वस्तुओं से बाजार पटे रहते थे, अब स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों के हाथों तैयार वस्तुएं हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन रहे हैं। स्वदेशी की ओर कदम बढ़ाकर ही पं. दीनदयाल जी को सच्चे अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित की जा सकती है।
लेखक श्री धरमलाल कौशिक, छत्तीसगढ़ भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं.