मुंबई. बम्बई उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित फिल्म को प्रमाण-पत्र नहीं देने के सेंसर बोर्ड के फैसले के बाद बृहस्पतिवार को कहा कि अदालत यह फिल्म देखेगी. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने ‘द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर’ पुस्तक से प्रेरित इस फिल्म को प्रमाणित करने से इनकार कर दिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र न मिलने सहित कई आपत्तियां उठाईं.
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह फिल्म देखने के बाद फिल्म निर्माताओं की याचिका पर फैसला लेंगे. अदालत ने निर्माताओं को फिल्म की एक प्रति जमा करने का निर्देश दिया, जिसमें उन दृश्यों या अंशों को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया हो, जिन पर बोर्ड ने आपत्ति जताई है. मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी.
जिस किताब पर यह फिल्म आधारित है, उसकी एक प्रति पहले ही अदालत में जमा कर दी गई है. फिल्म निर्माताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता रवि कदम, सत्य आनंद और निखिल अराधे ने दलील दी कि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने के बावजूद उच्च न्यायालय उनकी याचिका पर फैसला सुना सकता है.
वरिष्ठ वकील कदम ने दलील दी कि सीबीएफसी संशोधन समिति द्वारा प्रमाणन देने से इनकार करना न केवल फिल्म निर्माताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि बोर्ड ने एक व्यक्ति (मुख्यमंत्री आदित्यनाथ) से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए कहकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी काम किया है. उन्होंने कहा, “वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं.”