लंदन/न्यूयॉर्क/वाशिंगटन. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने रूस से कच्चे तेल की ‘अवसरवादी’ खरीद को लेकर भारत की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि भारत को अमेरिका के एक रणनीतिक साझेदार की तरह काम करना चाहिए. व्हाइट हाउस के व्यापार और विनिर्माण मामलों के सलाहकार ने सोमवार को ‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ के लिए लिखे एक लेख में भारत पर प्रतिबंधित कच्चे तेल को उच्च मूल्य वाले निर्यात में बदलकर रूसी तेल के लिए एक वैश्विक ‘क्लियरिंग हाउस’ के रूप में काम करने का आरोप लगाया.
नवारो लिखते हैं, ”रूसी कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता अवसरवादी है और पुतिन की युद्ध अर्थव्यवस्था को अलग-थलग करने के दुनिया के प्रयासों के लिए बेहद नुकसादनदायक है.” उन्होंने कहा, ”वास्तव में, भारत रूसी तेल के लिए एक वैश्विक ‘क्लियरिंग हाउस’ के रूप में काम करता है. प्रतिबंधित कच्चे तेल को उच्च मूल्य वाले निर्यात में बदलकर मास्को को उसकी जरूरत के डॉलर देता है.” नवारो ने रूस-भारत संबंधों के तथाकथित ‘गणित’ से शुरुआत करते हुए दावा किया है कि अमेरिकी उपभोक्ता भारतीय सामान खरीदते हैं और फिर उन डॉलर का इस्तेमाल रियायती रूसी कच्चा तेल खरीदने में किया जाता है.
उन्होंने लिखा, ”उस रूसी कच्चे तेल को परिष्कृत करके भारतीय मुनाफाखारों द्वारा मूक रूसी साझेदारों के साथ मिलकर दुनिया भर में बेचा जाता है. रूस उस राशि का उपयोग यूक्रेन में अपनी युद्ध मशीन के लिए करता है.” नवारो ने कहा, ”भारत के वित्तीय समर्थन से रूस यूक्रेन पर लगातार हमला कर रहा है, इसलिए अमेरिकी (और यूरोपीय) करदाताओं को यूक्रेन की रक्षा में मदद के लिए अरबों डॉलर और खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इन सब कारणों से भारत उच्च शुल्क और व्यापार बाधाओं के जरिये अमेरिकी निर्यात के दरवाजे बंद करता जा रहा है.”
उन्होंने अपने लेख में कहा है कि भारत औसत रूप से दुनिया में सबसे ज्यादा शुल्क लगाता है. साथ ही गैर-शुल्क बाधाएं भी खड़ी करता है. इससे अमेरिकी कामगारों और कंपनियों को नुकसान होता है.” नवारो ने कहा, ”इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा सालाना लगभग 50 अरब डॉलर के आसपास पहुंच गया है. और सबसे बड़ी बात यह है कि भारत उन अमेरिकी व्यापार से प्राप्त डॉलर का उपयोग रूसी तेल खरीदने में कर रहा है.”
रूसी तेल परिष्कृत कर वैश्विक बाजार में बेचता है चीन: रुबियो
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि चीन रूस से जो तेल खरीद रहा है, उसे परिष्कृत करता है और फिर उस परिष्कृत तेल को वैश्विक बाजार में बेचा जाता है. रुबियो ने रविवार को ‘फॉक्स बिजनेस’ को दिए एक साक्षात्कार में यह बात कही. उन्होंने कहा, ”चीन जा रहे और परिष्कृत हो रहे तेल पर गौर कीजिए. उसमें से बहुत सारा तेल वापस यूरोप में बेचा जा रहा है. यूरोप अब भी प्राकृतिक गैस खरीद रहा है. अब कुछ देश ऐसे हैं जो इससे दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यूरोप अपने प्रतिबंधों के संबंध में और भी बहुत कुछ कर सकता है.” दरअसल, उनसे प्रश्न किया गया था कि क्या यूरोप अब भी रूसी तेल खरीद रहा है.
यह पूछे जाने पर कि क्या रूस से तेल और गैस खरीदना जारी रखने के लिए यूरोप पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जा रहा है, रुबियो ने कहा, ”देखिए मुझे यूरोप पर प्रत्यक्ष रूप से (प्रतिबंधों) नहीं पता, लेकिन निश्चित रूप से द्वितीयक प्रतिबंध जैसे प्रभाव हो सकते हैं. उन्होंने कहा, ”यदि आप किसी देश पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाते हैं – मान लीजिए कि आप चीन पर रूसी तेल की बिक्री पर कार्रवाई करते हैं- तो चीन बस उस तेल को परिष्कृत करता है. फिर उस तेल को वैश्विक बाजार में बेच दिया जाता है, और जो कोई भी उस तेल को खरीदता है उसे इसके लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती है या, यदि वह उपलब्ध नहीं है तो उसे इसके लिए कोई वैकल्पिक स्रोत ढूंढना पड़ता है.”
उन्होंने कहा, ”इसलिए, जब आप सीनेट में प्रस्तावित विधेयक के बारे में बात करते हैं जिसमें चीन और भारत पर सौ प्रतिशत शुल्क लगाने की बात थी- तो हमने कई यूरोपीय देशों से सुना कि इसके क्या अर्थ हो सकते हैं, इस बारे में कुछ चिंता है.” रुबियो ने कहा कि वह इस मामले में यूरोपीय देशों के साथ ‘जैसे को तैसा’ जैसे विवाद में नहीं पड़ना चाहते. उन्होंने कहा, ”मेरा मानना है कि वे अधिक रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं….”