नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने रेणुकास्वामी हत्याकांड मामले में अभिनेता दर्शन और अन्य आरोपियों को दी गई जमानत रद्द करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि मशहूर हस्तियां ऐसी ‘रोल मॉडल’ होती हैं जिन पर बड़ी जिम्मेदारी होती है. न्यायालय ने आरोपियों को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया.
जमानत देने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को ”उसकी स्थिति या सामाजिक रसूख” के आधार पर कानूनी जवाबदेही से छूट नहीं दी जा सकती.
पीठ ने कहा, ”भारत का संविधान अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है, और यह अनिवार्य करता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी धनी, प्रभावशाली या लोकप्रिय क्यों न हो, कानून से छूट का दावा नहीं कर सकता. मशहूर हस्ती होने का दर्जा किसी आरोपी को कानून से ऊपर नहीं उठा देता, न ही उसे जमानत देने जैसे मामलों में तरजीही व्यवहार का अधिकार देता है.” कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 13 दिसंबर को अभिनेता और मामले के अन्य आरोपियों को जमानत दे दी थी.
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश में ”गंभीर खामियों” की ओर इशारा किया.
इसने कहा, ”आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध की गंभीरता और साजिश के आरोप के बावजूद, उच्च न्यायालय जांच के दौरान एकत्र की गई दोषपूर्ण सामग्री पर विचार करने में विफल रहा.” शीर्ष अदालत ने कहा कि चाहे आरोपी 140 दिन से अधिक समय तक हिरासत में रहे हों या रिहाई के बाद उन्होंने अच्छा आचरण प्रर्दिशत किया हो, इससे जमानत का आदेश सतत नहीं हो जाता, विशेष रूप से, जमानत देने के चरण में भौतिक कारकों पर विचार न किए जाने के कारण.
उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान मामले में षड्यंत्र, हत्या, साक्ष्य नष्ट करने और साक्ष्य गायब करने के आरोपों की मौजूदगी को भी रेखांकित किया. बताया गया कि जमानत मुख्य रूप से अभिनेता की कथित गंभीर चिकित्सा स्थिति के आधार पर दी गई थी. हालांकि, उनके मेडिकल रिकॉर्ड और उसके बाद के आचरण की जांच करने के बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह याचिका ”भ्रामक, अस्पष्ट और अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई है”.
पीठ ने कहा, ”लोकप्रियता दंड से मुक्ति का कवच नहीं हो सकती. जैसा कि इस न्यायालय ने कहा है, प्रभाव, संसाधन और सामाजिक स्थिति जमानत देने का आधार नहीं बन सकते, जहां जांच या मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का वास्तविक खतरा हो.” न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ”यह फैसला यह संदेश देता है कि आरोपी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं है.” उन्होंने कहा, ”इसमें एक कड़ा संदेश है कि किसी भी स्तर पर न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली को किसी भी कीमत पर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का शासन कायम रहे. कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर या नीचे नहीं है. न ही हम इसका पालन करते समय किसी की अनुमति मांगते हैं. समय की मांग है कि हर समय कानून का शासन कायम रहे.” शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को जेल में बंद आरोपियों को विशेष सुविधा प्रदान करने के प्रति भी आगाह किया.
अदालत ने कहा, ”जिस दिन हमें यह पता चला कि आरोपियों को पांच सितारा सुविधाएं दी जा रही हैं तो पहला कदम अधीक्षक और अन्य सभी अधिकारियों को निलंबित करने का होगा.” यह फैसला कर्नाटक सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया है.
दर्शन पर अभिनेत्री पवित्रा गौड़ा और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर 33 वर्षीय रेणुकास्वामी नामक एक प्रशंसक का अपहरण करने और उसे प्रताड़ित करने का आरोप है. रेणुकास्वामी ने पवित्रा को कथित तौर पर अश्लील संदेश भेजे थे. पुलिस ने आरोप लगाया कि रेणुकास्वामी को जून 2024 में तीन दिन तक बेंगलुरु के एक ‘शेड’ में रखा गया, प्रताड़ित किया गया और उसका शव एक नाले से बरामद हुआ.