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Home»Country»US: ‘भारत से संबंध पटरी पर लाने जरूरी, वरना तकनीकी बढ़त खो देगा अमेरिका’, पूर्व अधिकारियों की ट्रंप को चेतावनी
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US: ‘भारत से संबंध पटरी पर लाने जरूरी, वरना तकनीकी बढ़त खो देगा अमेरिका’, पूर्व अधिकारियों की ट्रंप को चेतावनी

Team RashtrawaniBy Team RashtrawaniSeptember 5, 2025No Comments5 Mins Read
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US: ‘भारत से संबंध पटरी पर लाने जरूरी, वरना तकनीकी बढ़त खो देगा अमेरिका’, पूर्व अधिकारियों की ट्रंप को चेतावनी
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US: अमेरिका और भारत के संबंधों में इन दिनों तनाव दिखाई दे रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय सामानों पर भारी आयात शुल्क (टैरिफ) लगने के बाद दोनों देशों के संबंधों में गतिरोध आ गया है। ऐसे में जो बाइडन सरकार में काम कर चुके अमेरिका के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि दोनों देशों के संबंधों को फिर से पटरी पर लाना बेहद जरूरी है, ताकि अमेरिका नवाचार के मामले में चीन के मुकाबले अपनी बढ़त न खो सके।

‘ट्रंप का व्यवहार अक्सर किसी समझौते की शुरुआत का संकेत’
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन और पूर्व उप विदेश मंत्री कर्ट एम. कैंपबेल ने एक लेख में लिखा कि अमेरिका और भारत के संबंध को दोनों ही दलों (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) का समर्थन मिला है। इन संबंधों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मनमानी को भी रोका है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के साझेदारों को भारत को यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि ट्रंप का व्यवहार अक्सर किसी समझौते की शुरुआत का संकेत होता है।

‘टैरिफ को लेकर भारत-अमेरिका संबंधों में तेज गिरावट’
यह लेख ऐसे समय में आया है जब भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता रुकी हुई है। ट्रंप प्रशासन ने भारत से आने वाले सामानों पर 50 फीसदी तक का टैरिफ लगा दिया है। सुलिवन और कैंपबेल ने लिखा है कि रूस से तेल खरीदने को लेकर टैरिफ और पाकिस्तान को लेकर उभरे तनाव में भारत-अमेरिका संबंधों में तेज गिरावट ला दी है। उन्होंने कहा कि यह याद करना जरूरी है कि भारत कैसे पिछले कुछ दशकों में अमेरिका का एक अहम साझेदार बना है। अगर मौजूदा स्थिति बनी रही तो अमेरिका अपने एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार खो सकता है।

‘…वरना विरोधियों के साथ खड़ा हो सकता है भारत’
उन्होंने यह भी लिखा कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ जो गर्मजोशी दिखाई, वह इस ओर इशारा करता है कि अगर अमेरिका ने संभलकर कदम नहीं उठाए, तो भारत उसके विरोधियों के साथ खड़ा हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत खुद को एक ऐसे हालात में पा सकता है, जहां एक तरफ सीमा पर चीन जैसा देश होगा और दूसरी तरफ अमेरिका के साथ तकनीक, शिक्षा और रक्षा से जुड़े संबंध कमजोर हो जाएंगे।

‘भारत से संबंध को लेकर पूर्व राष्ट्रपतियों ने उठाए थे अहम कदम’
पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि ऐसे समय में वॉशिंगटन और नई दिल्ली को केवल पुरानी स्थिति को बहाल करने से आगे बढ़कर कुछ ठोस और बेहतर करना होगा। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि ट्रंप से पहले अमेरिका के कई राष्ट्रपतियों ने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। इसमें जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और मनमोहन सिंह के समय हुआ ऐतिहासिक परमाणु समझौता और जो बाइडन व नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक्नोलॉजी और एयरोस्पेस में हुआ सहयोग शामिल है।

‘अमेरिका को नहीं रखनी चाहिए भारत-पाकिस्तान नीति’
भारत और पाकिस्तान की नीति को लेकर भी सुलिवन और कैंपबेल ने राय दी कि अमेरिका को अब भारत-पाकिस्तान नीति नहीं रखनी चाहिए। यानी दोनों देशों को एक साथ जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के पाकिस्तान के साथ आतंकवाद और परमाणु हथियारों को लेकर कुछ जरूरी हित हो सकते हैं, लेकिन भारत के साथ अमेरिका के संबंध इससे कहीं ज्यादा गहरे, व्यापक और महत्वपूर्ण हैं।

ट्रंप ने खुद को दिया था संघर्षविराम का श्रेय
उनका यह बयान तब आया है, जब ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के बाद हुए संघर्षविराम का श्रेय खुद को दिया, जबकि भारत इस बात से इनकार करता रहा। हाल के दिनों में ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान के साथ व्यापार और तेल को लेकर नए समझौते किए हैं और पाकिस्तानी सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में बुलाकर बातचीत भी की थी। इसी दौरान अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 25 फीसदी का शुल्क भी लगा दिया था।

‘औपचारिक संधि के तहत नई रणनीतिक साझेदारी की जरूरत’
सुलिवन और कैंपबेल ने यह भी राय रखी कि भारत और अमेरिका के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी एक औपचारिक संधि के तहत बनाई जा सकती है, जिसे अमेरिकी सीनेट की मंजूरी मिले। इस समझौते की बुनियाद पांच मुख्य स्तंभों पर रखी जाएगी, जिनका मकसद दोनों देशों की सुरक्षा, समृद्धि और साझा मूल्यों को मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को अगले दस वर्षों के लिए एक साझा योजना बनानी होगी, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, बायोटेक, क्वांटम, क्लीन एनर्जी, टेलीकम्युनिकेशन और एयरोस्पेस जैसी तकनीकों को साझा करने की रणनीति शामिल हो। यह भविष्य की दिशा तय करेगी।

उनका मानना है कि अमेरिका और भारत को साथ मिलकर एक साझा तकनीकी प्रणाली बनानी चाहिए, जो अन्य लोकतांत्रिक सहयोगियों से जुड़ी हो। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों के सामने तकनीकी बढ़त न खो दें। इसके लिए उन्हें एक साथ निवेश, अनुसंधान, और प्रतिभाओं को साझा करना होगा, साथ ही साथ साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी मिलकर काम करना होगा।

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