पटना. निर्वाचन आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों के नाम सोमवार को सार्वजनिक कर दिये. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. यह घटनाक्रम उच्चतम न्यायालय के उस निर्देश की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें कहा गया था कि हटाए गए नामों का विवरण 19 अगस्त तक सार्वजनिक किया जाए और 22 अगस्त तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की जाए.
बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, ”सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 14 अगस्त, 2025 को पारित अंतरिम आदेश के आलोक में… यह अधिसूचित किया जाता है कि ऐसे मतदाताओं की सूची, जिनके नाम वर्ष 2025 (प्रारूप प्रकाशन से पहले) की निर्वाचक नामावली में शामिल थे, लेकिन एक अगस्त, 2025 को प्रकाशित प्रारूप नामावली में शामिल नहीं हैं, कारणों (मृत/स्थायी रूप से स्थानांतरित/अनुपस्थित/बार-बार प्रविष्टि) सहित मुख्य निर्वाचन अधिकारी, बिहार और राज्य के सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दी गई है.” उन्होंने कहा कि जिन मतदाताओं के नाम मसौदा नामावली में शामिल नहीं हैं, प्रकाशित सूची में अपने ईपीआईसी नंबर का उपयोग करके अपनी प्रविष्टि और उसके कारणों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
एक अगस्त, 2025 को प्रकाशित मसौदा नामावली में शामिल नहीं किए गए मतदाताओं से संबंधित सूची सभी प्रखंड कार्यालयों, पंचायत कार्यालयों, शहरी स्थानीय निकाय कार्यालयों और मतदान केंद्रों पर भी प्रर्दिशत की गई है. सीईओ ने बताया कि इनके जरिये मतदाता अपनी प्रविष्टियों के बारे में जानकारी और कारण जान सकते हैं. उन्होंने बताया कि कोई भी असंतुष्ट व्यक्ति अपने आधार कार्ड की प्रति के साथ दावा दायर कर सकता है.
एसआईआर को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई हैं. एसआईआर को केवल उसी राज्य में लागू किया जा रहा है, जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और याचिकाकर्ताओं की एक दलील यह थी कि नामों को अपारदर्शी तरीके से हटाया गया है.
अधिकारियों ने बताया कि निर्वाचन आयोग ने मतदान केंद्रों पर ‘एएसडी’ (अनुपस्थित, स्थानांतरित और मृत) मतदाताओं के नाम प्रकाशित किये, साथ ही इसने उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर अमल करते हुए हटाए गए नामों का प्रकाशन ऑनलाइन भी किया.
बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के अनुसार, रोहतास, बेगूसराय, अरवल, सीवान, भोजपुर, जहानाबाद, लखीसराय, बांका, दरभंगा, पूर्णिया और अन्य स्थानों के मतदान केंद्रों पर एएसडी सूचियां प्रर्दिशत की गई हैं.
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”जिस तरह से सूचियां प्रकाशित की गई हैं, वह शीर्ष अदालत के फैसले का उपहास उड़ाने के समान है. हम पहले दिन से ही शामिल किए गए और हटाए गए नामों की एक समेकित, राज्यव्यापी सूची की मांग कर रहे हैं. आज की प्रक्रिया एक तमाशा है जो हमारी किसी भी चिंता का समाधान नहीं करती.”
उन्होंने कहा, ”आप निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर जाइए और आपसे या तो अपने ईपीआईसी नंबर के ज.रिये अपनी जानकारी खोजने के लिए कहा जाएगा, जो शायद केवल व्यक्तिगत मतदाताओं के लिए ही उपयोगी हो, या फिर किसी विधानसभा क्षेत्र में एक विशिष्ट बूथ चुनने के लिए कहा जाएगा, जिसकी राजनीतिक दलों को जरूरत होती है. वे पूरे राज्य के लिए हटाए गए नामों की सूची क्यों नहीं दे रहे हैं? शायद इसलिए कि वे उस पैमाने को छिपाना चाहते हैं जिस पर अनियमितताएं हुई हैं.” तिवारी का यह तर्क ऐसे कई मामलों की पृष्ठभूमि में आया है जिनमें मृत घोषित किए गए लोग जीवित पाए गए हैं. ऐसे ही कुछ लोगों को उच्चतम न्यायालय में पेश किया गया, जिस पर आयोग के वकील भड़क उठे और उन्होंने याचिकाकर्ताओं पर मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दोबारा दर्ज कराने में मदद करने के बजाय “नाटक” करने का आरोप लगाया.
भाकपा(माले) लिबरेशन के राज्य सचिव कुणाल का मानना है कि अगले महीने प्रकाशित होने वाली अंतिम मतदाता सूची में गलत तरीके से हटाए गए नामों को बहाल करने की ज.म्मिेदारी चुनाव आयोग पर होनी चाहिए. पार्टी प्रमुख दीपांकर भट्टाचार्य भी याचिकाकर्ताओं में से एक हैं.
कुणाल ने कहा, ”हम पिछले हफ़्ते भोजपुर निवासी मिंटू पासवान (41) के साथ मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय गए थे, जिनका नाम इसलिए हटा दिया गया था, क्योंकि संबंधित बीएलओ ने उन्हें मृतकों में शामिल कर लिया था. जब सीईओ ने बीएलओ को फ.ोन किया, तो उन्होंने कहा कि पासवान के पड़ोसियों ने उन्हें गलत जानकारी दी थी.” उन्होंने आगे कहा, “मैंने सीईओ को बताया कि नाम हटाने के लिए पासवान की किसी भी गलती को ज.म्मिेदार नहीं ठहराया जा सकता. तो फिर उन्हें एक फ.ॉर्म भरकर उसे फ.ोटो और दूसरे दस्तावेज.ों के साथ जमा करने की सख़्त कोशिश क्यों करनी पड़ रही है? आयोग इस चूक की ज.म्मिेदारी लेकर और बिना शर्त उनका नाम बहाल करके अपने पाप का प्रायश्चित कर सकता है. बेशक, यह बात अधिकारी को नागवार गुज.री और उन्होंने पलटकर कहा कि मैं तर्कहीन बात कर रहा हूं.”
तिवारी के विचारों से सहमति जताते हुए कुणाल ने कहा, ”अगर निर्वाचन आयोग तार्किकता की परवाह करता है, तो फिर समेकित एएसडी सूची उपलब्ध न कराने के पीछे क्या तर्क है? इससे हम जैसे राजनीतिक दल समस्याओं का ज़्यादा कुशलता से पता लगा पाते.” उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को 14 अगस्त को निर्देश दिया था कि वह बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण में पारर्दिशता बढ़ाने के लिए एक अगस्त को प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से हटाये गये 65 लाख मतदाताओं का विवरण प्रकाशित करे और साथ ही उन्हें शामिल न करने के कारण भी बताए.
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एसआईआर को लेकर निर्वाचन आयोग की आलोचना की और सोमवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा, ”मौजूदा मुख्य निर्वाचन आयुक्त (ज्ञानेश कुमार) पूर्ववर्ती अनिल मसीह से बेहतर प्रदर्शन करना चाहते हैं. मसीह चंडीगढ़ महापौर चुनाव में पीठासीन अधिकारी थे. आयोग की विश्वसनीयता बचाने की ज.म्मिेदारी अब अधिकारियों की नहीं, बल्कि जनता की है.” बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा एसआईआर के प्रथम चरण के तहत तैयार किए गए मसौदा मतदाता सूची में 65 लाख से अधिक गणना प्रपत्र ‘शामिल नहीं’ किए गए, जिससे पंजीकृत मतदाताओं की संख्या लगभग 7.90 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ रह गई.
निर्वाचन आयोग के अनुसार, पटना में सबसे अधिक 3.95 लाख गणना प्रपत्र शामिल नहीं किए गए. इसके बाद मधुबनी (3.52 लाख), पूर्वी चंपारण (3.16 लाख), गोपालगंज (3.10 लाख), समस्तीपुर (2.83 लाख), मुजफ्फरपुर (2.82 लाख), पूर्णिया (2.739 लाख), सारण (2.732 लाख), सीतामढ़ी (2.44 लाख), कटिहार (1.84 लाख), किशनगंज (1.45 लाख) हैं.
शेखपुरा ऐसा जिला है, जहां केवल 26,256 गणना प्रपत्र मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं किए गए. इसके बाद शिवहर (28,166), अरवल (30,180), मुंगेर (74,916) और खगड़िया (79,551) का स्थान है. निर्वाचन आयोग ने दावा किया कि मतदाता सूची में दर्ज 22,34,501 लोग इस प्रक्रिया के दौरान मृत पाए गए, जबकि 36.28 लाख लोग ‘स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए’ या अपने बताए गए पते पर ‘नहीं मिले’ और 7.01 लाख लोग ‘एक से ज़्यादा जगहों’ पर पंजीकृत पाए गए.